VARUN DEV
रविवार, 27 मई 2012
aj fir mee tanha hu.
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011
बुधवार, 2 फ़रवरी 2011
माँ
नीचे एक पत्र पड़ा है
शायद डाकिया अंदर डाल गया है
उत्सुकता से खोलता हूँ
माँ का पत्र है
एक-एक शब्द
दिल में उतरते जाते हैं
बार-बार पढ़ता हूँ
फिर भी जी नहीं भरता
पत्र को सिरहाने रख
सो जाता हूँ
रात को सपने में देखता हूँ
माँ मेरे सिरहाने बैठी
बालों में उंगलियाँ फिरा रही है।
प्रेम दर्दे
मस्तिष्क की बारीक़ी जांच से पता चलता है कि मस्तिष्क के जो हिस्से दर्द से निपटने के समय सक्रिय होते हैं वो प्रेम संबंधी विचारों के समय भी सक्रिय होते हैं.
अमरीका के स्टेनफ़र्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 15 छात्रों को हल्का दर्द पहुंचाया और साथ ही ये देखा कि अपने प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर देखते हुए उनका ध्यान बंटा या नहीं.
उल्लेखनीय है कि ये अध्ययन उन लोगों पर किया गया जिनके प्रणय संबंध शुरुआती दौर में थे. इसलिए हो सकता है कि प्रेम की इस दवा का असर आगे चलकर बेअसर हो जाए.
प्रेम एक सशक्त भाव
जिन वैज्ञानिकों ने ये प्रयोग किया उन्होने मस्तिष्क के अलग अलग हिस्सों की गतिविधियों को मापने के लिए फ़ंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग या एफ़एमआरआइ का इस्तेमाल किया.
विज्ञान जगत में ये बात जानी जाती है कि प्रेम की सशक्त भावनाएं मस्तिष्क के कई हिस्सों में गहन गतिविधि पैदा करती हैं.
इसमें मस्तिष्क के वो हिस्से भी शामिल हैं जो डोपेमाइन नामक रसायन पैदा करते हैं. इस रसायन से व्यक्ति अच्छा महसूस करता है. ये रसायन आमतौर पर मिठाई खाने के बाद या कोकेन जैसे मादक पदार्थ के सेवन के बाद पैदा होता है.
स्टेनफ़र्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जब हमें दर्द की अनुभूति होती है तो हमारे मस्तिष्क के कुछ हिस्से गतिशील हो उठते हैं.
उन्होने ऐसे 15 छात्रों पर प्रयोग किया जिनका प्रणय संबंध को नौ महीने से अधिक नहीं हुए थे. इसे गहन प्रेम का पहला चरण माना जाता है.
हर छात्र से अपने प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर और किसी परिचित व्यक्ति की फ़ोटो लाने को कहा गया.
उन्हे ये तस्वीरें दिखाते हुए उनकी हथेली में रखे गर्मी पैदा करने वाले पैड के ज़रिए हल्का दर्द पहुंचाया गया. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उनके मस्तिष्क का स्कैन किया गया.
स्कैन से पता चला कि उन्हे दर्द की अनुभूति अपने प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर देखते हुए कम हुई जबकि परिचित व्यक्ति की तस्वीर देखते हुए कुछ अधिक.
शोध में शामिल डॉ जेरैड यंगर का कहना है कि प्रेम कुछ उसी तरह काम करता है जैसे दर्द निवारक दवाएं काम करती हैं.
डार्बी विश्वविद्यालय के स्नायुमनोवैज्ञानिक प्रोफ़ैसर पॉल गिल्बर्ट का कहना है कि भावात्मक स्थिति और दर्द की अनुभूति के बीच ये संबंध स्पष्ट है.
उन्होने कहा, "एक उदाहरण फ़ुटबॉल खिलाड़ी का दिया जा सकता है जो गंभीर चोट लगने के बावजूद खेलता रहता है क्योंकि वो भावात्मक आवेश की स्थिति में होता है".
प्रोफ़ैसर गिल्बर्ट ने कहा, "ये बात समझनी ज़रूरी है कि अकेलापन और अवसाद के शिकार लोगों में दर्द झेलने की क्षमता भी बहुत कम होती है जबकि जो लोग सुरक्षित अनुभव करते हैं और जिन्हे भरपूर प्यार मिलता है वो अधिक दर्द बर्दाश्त कर सकते हैं ".
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
आदर्श प्रेमिका के गुण
भई बात कई साल पहले की है, एक धार्मिक फ़िल्म के हिट हो जाने के बाद, हमारे गांव में लोग पर्चों पर, संतोषी माता के चमत्कारों के किस्से छाप कर उन्हें बंटवाने लगे. पर्चे पे नीचे छोटी फ़ांट मे लिखा होता था की आप भी ऐसे २५०/५००/१००० पर्चे छपवा के बांटो वरना अनिष्ट होगा और ये भी की जिन्होंने पर्चे बांटे उन्हें गडा धन मिला आदी नए चमत्कार हुए – अब पढने वाला “टैग” हो जाता था – होना क्या था गंवार लोगों को इस प्रकार के पर्चे छपवा के बंटवाने का दौरा आ गया. चमत्कारों का तो पता नही गांव की प्रिंटिंग प्रेस वाले की जरूर निकली पडी – संतोषी मां के चमत्कारों वाले पर्चे स्पेशल रेट पे छपवाने का बोर्ड अलग बनवा लिया उस ने. हम आज तक उस प्रिंटिंग प्रेस वाले को इस “चमत्कारी पर्चे” की कांस्पीरेसी करने के लिए दाद देते हैं, वो पट्ठा साफ़ मुकर जाता है.
फ़िर चेन-मेल का दौर भी देखा. आज एक ही विषय पर अपनी अपनी हांकने के लिए हमारे पास अक्षरग्राम पर अनुगूंज के आयोजन का प्रबंध भी है. अब ये बाकायदा टेग्गिंग नामक छूत की बिमारी ने आन जकडा है. अमित ने हमें टैग किया है, यानी एक विषय पर लिखना है जिस पर अन्य लोग लिखे आ रहे हैं और बिमारी फ़ैल रही है. हमें इस बिमारी को आगे फ़ैलाना है आदर्श प्रेमिका के गुण गिना कर.
तो देसी चाहे गांव मे रहें या शहर में, देस मे या विदेस मे, मालवी/निमाडी में बोलें या अंगरेज्जी झाडें, हरकतें एक जैसी ही करते हैं. संतोषी माता के चमत्कार का स्थान प्रेमी/प्रेमिका के गुणों ने ले लिया है और प्रिंटिंग प्रेस की जगह ब्लाग.
तो वो भी क्या दिन था यार. एक कन्या ने हम से पूछा था कभी – तुम्हें एक लडकी में क्या गुण चाहिए? सवाल सुन के हम सकपका गए थे. काहे से की लडकी चाहिये वो पता था कैसी चाहिये सोचने की नौबत नही आयी थी – उस जमाने मे भारतीय किशोर “लगे मुझे सुन्दर हर लडकी” वाली फ़्रस्टू हालत मे जीता था – हम भी उसी बदहाली में दिन गुजार रहे थे. अब कोई भरे समन्दर में प्यास से मर रहा है, पानी की तलाश में अपनी नैया अपने हाथ खे रहा है. आप पूछो – “आप कोकाकोला,रूह-अफ़जा,नीबू-पानी, छाछ क्या लोगे?” तो प्यासा क्या बोलेगा – “अबे जो हाथ लगे ले आ!”.
आशावादी उस्तादों ने यही सिखाया था “लडकी और ट्रेन के छूट जाने का अफ़सोस नही किया करते – एक जाएगी तो अलगी आएगी”. हमें लगा हमरे अच्छे दिन दस्तक दे रहे हैं. उस रात हम एक विश्वस्त मित्र के साथ हमारी होने वाली सपनों की रानी के गुणों की लिस्ट बनाने के लिए जुट गए – हिंदी अंग्रेजी संस्कृत शब्दकोश खोल गये. कुमारसंभव, गीत गोविंदम से ले कर कामसूत्र तक की पूरी रेंज कवर की गई. प्रेम के मामले में अपना अजेंडा था फ़र्स्ट कम फ़र्स्ट सर्व्ड – गुणों के मामले मे रुख लचीला था. जैसा की स्पष्ट ही है. लेकिन जस्ट इन केस अगर कोई पूछ ले तो लिस्ट तो तैयार होना मांगता ना!
तो काफ़ी सोच विचार के बाद संस्कृत शब्द चाहे जितने सटीक थे उन्हें क्लिष्ट और ओल्डस्कूल माना जा सकता है ये सोच कर राम भरोसे हाई-स्कूल के लेवल पे जितनी आती थी उतनी अंग्रेजी मे से एक बडी बेवकूफ़ाना लिस्ट बनाई गई – कुल जमा तीन गुण “सेन्सिटिव, सेन्सीबल, सेन्सेशनल” (सौंदर्य के परिपेक्ष्य में), और कन्या के मूड को और उत्साह को देखते हुए गुण गिना कर आगे “..जैसे की तुम हो” जोड कैसे कहा जाए इस पर राय भी बनी – ताकी एक ही बार में मामला टोटली सील किया जा सके!
तैयारी होने के बावजूद जीवन मे कभी गुणों की इस लिस्ट के प्रयोग का मौका नही मिला. लेकिन कहते हैं कोई भी तैयारी वेस्ट नही जाती.
कुछ समय बाद मित्र को इन्ही हालात में लिस्ट की दरकार आन पडी, उसने हमारी साझा तैयारी का सदुपयोग किया और जोश में और शायद कालीदास के श्रंगार रस के प्रभाव में, गुणों की लिस्ट में लगे हाथ “सेंसुअस” भी जोड कर प्रस्तुत कर दिया. साथ ये भी की “.. जैसी की तुम हो” – देसी कन्या ने मित्र का मंतव्य और फ़िर गंतव्य भांपा और वो भी इस जल्दबाजी पर खरी-खोटी सुना कर पैर पटकती हुई चल दी. मित्र समझदार था – वो बोला इस मे उस का कोई दोष नही है – वो तो भोला और अनाडी है ऐसी स्थिती में काम आने वाली लिस्ट तो हमने बना के उसे रटाई थी! तो हम पूरी तरह काम आ गए और मित्र का काम बन गया. इस प्रकरण की खबर पाने वाली अन्य कन्याओं के बीच हमारी साख का काम तमाम हो चुका था.
तो प्रेमिका कैसी हो इस पर किसी जमाने में मित्र के ४ गुण गिनाने पर जो बवाल हुआ था वो आज तक याद है और अब आठ गुण गिनाने का नियम देख कर सोच मे पड गया हूं.
अगर आदर्श प्रेमिका की बात करें तो आज हमारे गुणों के प्रिफ़रेंस बदल चुके हैं – आज प्रेमिका कम और चतुर मंत्राणी की जरूरत अधिक है. ताकी हम आराम से सर्फ़िंग कर सकें और जीवन की नैया एक कुशल महिला के हाथ में दे कर ब्लाग लिख सकें. गुण सूची निम्नलिखित है –
आशा है की ये दोनो लिस्टें चार गुण वाली और आठ गुण वाली भी, कुआंरो के काम आएंगी!